Saturday, October 31, 2015

बारिश के पहले

कविता
बारिश के पहले  
ब्रजेश कानूनगो 

आने से पहले
कुछ और भी चला आता है
सूचना की तरह
जैसे उजाले से पहले
गुलाबी हो जाता है आकाश
  
मानसून के पहले
मेघ आते हैं मुआयना करने
टॉर्च जलाते हुए
बूंदों के पहले कोई अंधड़
अस्त-व्यस्त करता है जीवन

सौंधी महक में लिपटी    
याद आती है तुम्हारी
बारिश से ठीक पहले.   


ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रीजेंसी, चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर -452018
 

 



  




गारमेंट शो रूम में

कविता
गारमेंट शो रूम में
ब्रजेश कानूनगो

सलाम किया वर्दीधारी ने कांच के दरवाजे को खोलते हुए 
और कहा - वेलकम सर
स्वागत के जवाब में झुकी गरदन 
दाहिने पैर का जूता उसका
फटा हुआ था अंगूठे की जगह से

शब्द से रोटी के रास्ते खुलते थे सुरक्षा गार्ड के

जादूई कार्डों से लैस आदमी  
बिना दीवार की चौखट से गुजरता है बेधड़क
तो कोई सायरन नहीं बजता
कागज़ से बने हथियार अभी
पकड़ से बाहर ही हैं सुरक्षा जांच में

जगमगाते जंगल में कटे सरों के भूत
अपनी टांगों की तलाश में हेन्गरों पर अनगिनत लटके थे 
जबकि थोड़ी ही दूर लहराती आस्तीनें 
राहगीरों से दुपट्टों का पता पूछ रहीं थीं
सब कुछ क्षत विक्षत सा
देह के टुकड़े बिखरे पड़े थे बाजार में
जूतों का अम्बार लगा था एक कोने में
पैरों के इन्तजार में

बेजान पुतलों में जीवन का आभास होता था
जाने किस देश-प्रदेश के थे वे बुत
अपनी चिकनी त्वचा पर गर्व करते
उत्सव में जाने को लगभग तैयार खड़े थे
हालांकि उनके सर गंजे थे
विगों का कारोबार अभी शुरू नहीं किया था कंपनी ने

और जो बालों को खूबसूरती से संवारे
कंपनी की वेशभूषा में सजे 
दौड़ रहे थे यंत्र की तरह
चेंज रूम में ग्राहकों को हेंगर थमाकर
खुद को नंगा देख रहे थे आईने में

अचरज की बात थी कि
दादी पर खूब जंचता था जो पोलका
ढेर लगा था वहाँ बिंदियों वाली उस छपाई का   
कैरी की खूब आई थी बहार
और अस्सी कली का छींट का घाघरा
दीवार पर झूमर खेल रहा था

खबर है पिपल्या गाँव की कजरी को
सुन्दरी का मुकुट पहनाने की कोशिश में है गारमेंट कंपनी

निन्यानू के फेर में पड़े मुहावरे की दूकान सजी थी  
चार सौ निन्यान्वे से लेकर
नौ हजार नौ सौ निन्यानवे की चिपकियाँ चमक रही थीं जगह जगह
नौ रूपए अलग से वसूले गए ब्रांड चिन्हित कैरी बेग के लिए

सब से पहले टाउनशिप में कार से उतरती है
कंपनी की दमकती थैली.  


ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रीजेंसी, चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर – 452018

  
   




वाह ! क्या बात है !



कविता
वाह ! क्या बात है !
ब्रजेश कानूनगो  

अद्भुत नजारा है सभागार में
सुरों का साम्राज्य पसरा हुआ है चारों तरफ
गायक की भंगिमाओं के साथ
एक आलाप चल रहा है श्रोताओं के भीतर
तानपुरे की मद्दिम लहरों पर सवार
तबले और आवाज की नावों में होने लगती है जुगलबंदी
तो निहाल हो जाते हैं संगीत यात्री

लम्बी दौड़ के बाद जब सफ़र थमता है तो
अचंभित सैंकड़ों स्वर फूट पड़ते हैं-
वाह-वाह ! क्या बात है !

वाह-वाह के दो शब्द
नई ऊर्जा से भर देते हैं कलाकारों को

और वह एक बैठा है
सभागार में बिलकुल चुपचाप
उठती उतराती तरंगों का
हो नहीं रहा कोई असर
किसी कंपनी के ट्रेड मार्क की तरह
जड़ हो गया है उसका चेहरा

आया है जब महफ़िल में
तो इतना वह जरूर जानता होगा
कि मित्र ही नहीं
शत्रु भी होते हैं तारीफ़ के हकदार
कलाएँ तो फिर दुश्मन भी नहीं रहीं कभी किसी की 

संवेदनाओं के पौधों में प्रशंसा की कलियाँ
खिली नहीं अब तक उसके भीतर  
शिकार तो नहीं हो गया है वह
प्रशंसा नहीं करने की किसी कूटनीति का

दोष नहीं उसका इसमें शायद
कि बजा नहीं पा रहा तालियाँ
हो सकता है पहले उसने भी बहुत की हो मेहनत
खूब लिखी हों जीवन की ख़ूबसूरत कविताएँ
और किसी ने बजाई नहीं हो ताली   

सुन ही नहीं पाया हो कभी
कि- वाह! क्या बात है !

ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रीजेंसी,चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर-452018



 
      


    

दो लड़कियों की तस्वीर


कविता
दो लड़कियों की तस्वीर
ब्रजेश कानूनगो

पहाड़ी ढलान से उतरती दिखाई दे रही हैं
तस्वीर में दो लड़कियाँ

उनके पैरों की स्थिति बता रही है कि
बहुत सावधान हैं उनके कदम

वैसे संभल कर चलना
कोई अटपटी बात नहीं है
रास्ता वीरान और ऊबड़ खाबड़ हो तो
लाजिमी हो जाती है सावधानी

यह भी संभव है कि
उनके साथ में हो कोई तीसरी लड़की
जिसके हाथ में रहा हो कैमेरा
पुरुष साथी भी हुआ तो
क्या फर्क पडेगा उनके बतियाने में

ये जो सौन्दर्य बिखरा पड़ा है आसपास
जरूर हलचल मचा रहा होगा उनके भीतर

कैमरे की आँख ने चाहे 
नहीं पकड़ी हैं उनकी आँखों की चमक
फिर भी कुछ तो है तस्वीर में
जो उनकी पीठ के पीछे भी सुनाई दे रहा है
वायलिन से निकले संगीत की तरह
 
देह भाषा के साथ बिखर रही है
प्रफुल्लता की खुशबू  
खुली हवा में

अरे यह क्या हुआ अचानक
एक नदी बह निकली है
अनायास तस्वीर के भीतर से  
बहने लगे हैं लड़कियों के सुख दुःख
धारा के साथ साथ  

बर्फ जब पिघलती है
तो रोक नहीं सकते उसका बहना

आगे जाना अब मुश्किल होगा शायद  
फिसलन बहुत हो गयी है रास्ते पर
बारिश है कि रुकने का नाम नहीं ले रही
ठिठक गईं हैं तस्वीर की दोनों लड़कियाँ

भीगती ही जा रही है लड़कियों की यह तस्वीर.

ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रीजेंसी, चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर- 452018  

 










डायरी

कविता
डायरी
ब्रजेश कानूनगो

डायरी के पन्ने से घास की खुशबू आती है
पत्तियों की सरसराहट
पेड़ की चीख के साथ
कुछ पक्षियों के उड़ जाने की आवाज को सुनता हूँ मैं

आंकड़ों की संपदा से भारी हैं कुछ पन्ने
कुछ तने हैं स्वाभिमान से
कुछ पन्ने गालियों से शर्मसार हैं
दर्शन की नई व्याख्या से 
इतिहास लिखा गया है डायरी में


किसी स्त्री के खून से रंग गया है जैसे एक पन्ना
खूंखार जबड़ों से मुक्ति के संघर्ष में छटपटा रहा है कोई बच्चा
मुस्कराहट भी बिखरी है डायरी में कुछ बच्चों की 
मुक्ति ही जैसे उनके सत्य का अर्थ

पन्ने-पन्ने पर बिखरी हैं कथाएँ
विज्ञान, राजनीति और अर्थशास्त्र का
सबक पढ़ा रहे हैं योगाचार्य
कथाओं के वृहद् कारोबार का विस्तार है इसमें
कारागार के भीतर ध्यान में लीन हैं पूजनीय बाबा
नाटक के जवाब में थियेटर को आग लगाते  
प्रहसन की स्क्रिप्ट मौजूद है बीते साल की डायरी में   

कविताएँ तो बहुत सारी हैं डायरी के पन्नों पर
एक में वसंत का सौन्दर्य बिखरा है
प्रेम में इतने लीन है कुछ पन्ने कि सुध-बुध खो बैठे है
उन्हें पता ही नहीं कि
कितने बह गए समुद्र के गुस्से के कारण
पहाड़ के प्रलय में कितने लापता हो गए
घनी-गहरी घांटियों में
दुःख की बाढ़ से भीग रहा है पन्ना

कुछ फाड़कर निकाल दिए गए हैं
खाली छोड़ दिए गए हैं कुछ पन्ने जान बूझकर

ऐसे ही भरती रहेगी स्मृति की अलमारी.


ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रीजेंसी,चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर -452018      

        

आभासी दुनिया में

कविता
आभासी दुनिया में
ब्रजेश कानूनगो

छोटी और बहुत व्यस्त हो गयी है यह दुनिया
समय का अपव्यय है मिलना जुलना
केवल मित्रता के लिए मित्र नहीं बनाता कोई
दुःख और खुशी वैयक्तिक हो गए हैं आस्था की तरह
चेहरा पढ़ पाने की भाषा नदारत है संसार से 
  
कवि ही पढ़ते है कविताएँ
पुस्तकें समृद्धि हैं ग्रंथालयों की
या फिर दिखाई देती हैं
अभिजात्य के प्रमाणपत्र की तरह
टंगी होती हैं जैसे हुसैन की पेंटिंग
दुनियादार की दमकती बैठक में

मैंने चुन लिया है नया विकल्प
लोग कहते हैं कि केवल मायावी है मेरा संसार 
सच नहीं सच की छाया डोल रही है यहाँ
भ्रम और झूठ क्या कम हैं हुजूर वहाँ?
जिसे कहते हो असली दुनिया
 
हर जीत पर इस जहाँ में देता हूँ बधाई
और दुःख में होतीं हैं मेरी संवेदनाएं सबके साथ
करता हूँ तारीफ़ खुले मन से  
जब भीग जाता है मन किसी कविता को पढ़ते हुए
हर उस बात पर जारी करता हूँ सहमति का वक्तव्य
जो नदी, चौराहे और दिलों की सडांध को दूर करती हो

दीवार पर चिपकाता हूँ
अन्याय के खिलाफ अपना बयान     
रोज लिख आता हूँ कुछ शब्द
लाल स्याही से जैसे लिखता खुली इबारत कोई इंकलाबी .
 

ब्रजेश कानूनगो 503,गोयल रीजेंसी, चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर-452018    

Friday, October 30, 2015

एक दिन

कविता
एक दिन
ब्रजेश कानूनगो 

एक दिन धरती कांपती है
और ढह जाता है हमारा सारा अहँकार

संवाद मूक हो जाते हैं
अनंत की ओर यात्रा के प्रस्थान का अभिनय करते
अचेतन में विलीन हो जाते हैं अभिनेता
रंगमंच की छत के नीचे
धूल में बदल जाता है महानाट्य

स्खलित होने लगती प्रमोद की पहाड़ियाँ
दुःख में उमड़ी नदियों में बह जाती हैं खुशियाँ

और एक दिन
ज़रा-सा मद्दिम संकेत भी
धराशायी हौसलों में उम्मीद का टेका लगाता है
सरगम का सबसे कोमल स्वर फूटता है मिट्टी के भीतर से अचानक  
जैसे बीज की नाभि से कोई नया पत्ता निकला हो

सूखा नहीं था माँ का आँचल
निर्जीव देह की बाहों में सिमटा मासूम
अब भी मुस्कुरा रहा था.


ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रिजेंसी, चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर-452018