कविता
गारमेंट शो रूम में
ब्रजेश कानूनगो
सलाम किया वर्दीधारी ने कांच के दरवाजे को खोलते
हुए
और कहा - वेलकम सर
स्वागत के जवाब में झुकी गरदन
दाहिने पैर का जूता उसका
फटा हुआ था अंगूठे की जगह से
शब्द से रोटी के रास्ते खुलते थे सुरक्षा गार्ड
के
जादूई कार्डों से लैस आदमी
बिना दीवार की चौखट से गुजरता है बेधड़क
तो कोई सायरन नहीं बजता
कागज़ से बने हथियार अभी
पकड़ से बाहर ही हैं सुरक्षा जांच में
जगमगाते जंगल में कटे सरों के भूत
अपनी टांगों की तलाश में हेन्गरों पर अनगिनत लटके
थे
जबकि थोड़ी ही दूर लहराती आस्तीनें
राहगीरों से दुपट्टों का पता पूछ रहीं थीं
सब कुछ क्षत विक्षत सा
देह के टुकड़े बिखरे पड़े थे बाजार में
जूतों का अम्बार लगा था एक कोने में
पैरों के इन्तजार में
बेजान पुतलों में जीवन का आभास होता था
जाने किस देश-प्रदेश के थे वे बुत
अपनी चिकनी त्वचा पर गर्व करते
उत्सव में जाने को लगभग तैयार खड़े थे
हालांकि उनके सर गंजे थे
विगों का कारोबार अभी शुरू नहीं किया था कंपनी ने
और जो बालों को खूबसूरती से संवारे
कंपनी की वेशभूषा में सजे
दौड़ रहे थे यंत्र की तरह
चेंज रूम में ग्राहकों को हेंगर थमाकर
खुद को नंगा देख रहे थे आईने में
अचरज की बात थी कि
दादी पर खूब जंचता था जो पोलका
ढेर लगा था वहाँ बिंदियों वाली उस छपाई का
कैरी की खूब आई थी बहार
और अस्सी कली का छींट का घाघरा
दीवार पर झूमर खेल रहा था
खबर है पिपल्या गाँव की कजरी को
सुन्दरी का मुकुट पहनाने की कोशिश में है गारमेंट
कंपनी
निन्यानू के फेर में पड़े मुहावरे की दूकान सजी थी
चार सौ निन्यान्वे से लेकर
नौ हजार नौ सौ निन्यानवे की चिपकियाँ चमक रही थीं
जगह जगह
नौ रूपए अलग से वसूले गए ब्रांड चिन्हित कैरी बेग
के लिए
सब से पहले टाउनशिप में कार से उतरती है
कंपनी की दमकती थैली.
ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रीजेंसी, चमेली पार्क, कनाडिया रोड,
इंदौर – 452018