Thursday, October 29, 2015

कैसे कहूँ कि घर अपना है

कैसे कहूँ कि घर अपना है

जिस घर में रहता हूं
कैसे कहूं कि अपना है

चीटियां कीट पतंगे और
छिपकलियां भी रहती हैं
यहां बड़े मजों से
उधर कोने में कुछ चूहों ने
बनाया है अपना बसेरा
ट्यूब लाइट की ओट में
पल रहा है चिड़ियों का परिवार

आंगन में खिले फूलों पर
मंडराती तितलियां और भौंरे
गुनगुनाते हुए चले आते हैं
घर के अंदर तक
कांप जाता हूं अचानक यह सोचकर
कि कहीं एक दिन किसी को
दिखाई न दे जाएं ईश्वर सपने में
और कहें कि सोया पड़ा हूं युगों से
धरती के भीतर- इस घर के नीचे
निकालो मुझे बाहर
और बनाओ आस्था की
एक इमारत यहां

यह भी हो सकता है कि
निकल आएं किसी की पवित्र अस्थियां
आंगन में पौधा लगाते समय
घर के एक हिस्से में होने लगे इबादत
और धर्मरक्षार्थ कुछ लोग शुरू कर दें अखंड कीर्तन

सरकारी मुनादी के बाद
डाल दिए जाएं ताले

मेरे घर के दरवाजों पर। 

No comments:

Post a Comment