Thursday, October 29, 2015

खलनायक

कविता
खलनायक


कहानी से एक जिन्न निकलता है
और पूरे शहर को ले लेता है अपनी गिरफ्त में
बहुत बिगड़ा हुआ है इसका मिजाज
अलादीन के बस में नहीं अब उसे संभालना

तूफ़ान की तरह आता है और
खलिहानों में सूखती मिर्चियों को
उड़ा ले आता है अपने साथ
दौड़ती रहती है कहानी उधर
जिधर सुर्ख आँखों को मसलते हुए
बेतहाशा भागते जाते हैं बेहाल लोग

ये एक धारावाहिक कहानी है
जिसके हर एपिसोड में मुख्य पात्र 
चीख चीख कर कहता है कि
नायक नहीं खलनायक हूँ मैं

जंगल में लगी आग की तरह
कभी आता है खलनायक
तो कभी पहाड़ से उतर कर
जीवन को रोंदता हुआ
निकल जाता है
किसी महासागर में उत्पात मचाने    

समझ ही नहीं पाते हम कि
किस रूप में उपस्थित हो जाएगा वह आगे
बीते जमाने की स्वांग परम्परा को
जीवित बनाए रखा है अब तक इसने

किसी वायरस की शक्ल लिए
चली आती है इसकी जहरीली फुंफकार
खोजा नहीं जा सका अब तक
जिससे बचाव का उपाय  
विज्ञान की किसी भी शाखा में 

गुस्सैल नदी का रूप धर
बस्ती में तांडव करने लगता है
तो कभी धरती के भीतर पहुँच कर 
चलाने लगता है हथौड़े

कल ही तो दिखाई दिया था वह  
तटीय इलाके में आतंक बिखेरता  
चला आया था किसी घुसपेठिए की तरह
समुद्र की तलहटी में छिपता हुआ  

बहुत खतरनाक है यह बहुरूपिया  
भयानक हैं उसकी कहानियाँ
जारी है फिर भी कहानी का लिखा जाना  

कोशिश करें आप तो जरूर खोज सकते हैं 
कथाकार का नाम
मगर तारीफ़ तो उसकी बनती है
जो खौफ से गुजरता से लगातार

कहानी का हर पैरा
देता है जिसे खलनायक से लड़ने की
नई ताकत.  

ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रीजेंसी, चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर-452018

 

 

    

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