Thursday, October 29, 2015

मजे के साथ

मजे के साथ

बहुत इच्छा रहती है
जब चाहे छुटि्‌टयाँ मनाने की
मजे के साथ

कांपते हैं जब सूरज के हाथ पाँव
कुहरे को भेदता हुआ
ठंडी हवा के साथ आता है मजा

धूप के साथ गिरता है मजा पीठ पर सर्दियों में

निकलता हूँ मजे के साथ
शुरू होता है जब बूंदों का संगीत
पहुँच जाता हूँ वहाँ
खत्म हो जाते हैं जहाँ कांकरीट के पहाड़
गुलांट खाने के लिए बिछी होती है
हरी मखमली जाजम

फैंकता हूँ जब साधकर पत्थर
कत्तल के साथ उछलता है मजा सतह पर
कूद पड़ती है किनारे की बत्तखें घबराकर
एक के बाद एक पानी में

तैरने लगता है मजा तालाब में
कमल पंखों को गुदगुदाते हुए


बैठ जाता है उड़कर
बिजूके के माथे पर यकायक
हरी हो जाती हैं मजे की आँखें
पकी हुई बालियों की गंध
समा जाती है उसकी देह में

बरसती आग के बीच
आम की छाया में पड़ी खटिया पर
मेरे साथ सुनता है
बड़े मामा से कारनामें

उड़ जाता है न जाने कहाँ
गुलाबी अनंत में चिड़ियों के साथ
छुप जाता है किसी बछड़े की तरह
घर लौटते रेवड़ में

उड़ती हुई धूल के बीच
दिखाई देती है मजे की झलक

बहुत इच्छा रहती है
मजे के साथ छुट्‌टी बिताने की
की-बोर्ड और कम्प्यूटर पर ताला लगाकर
बहुत इच्छा रहती है मजा करने की।


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