मजे के साथ
बहुत
इच्छा रहती है
जब
चाहे छुटि्टयाँ मनाने की
मजे
के साथ
कांपते
हैं जब सूरज के हाथ पाँव
कुहरे
को भेदता हुआ
ठंडी
हवा के साथ आता है मजा
धूप
के साथ गिरता है मजा पीठ पर सर्दियों में
निकलता
हूँ मजे के साथ
शुरू
होता है जब बूंदों का संगीत
पहुँच
जाता हूँ वहाँ
खत्म
हो जाते हैं जहाँ कांकरीट के पहाड़
गुलांट
खाने के लिए बिछी होती है
हरी
मखमली जाजम
फैंकता
हूँ जब साधकर पत्थर
कत्तल
के साथ उछलता है मजा सतह पर
कूद
पड़ती है किनारे की बत्तखें घबराकर
एक
के बाद एक पानी में
तैरने
लगता है मजा तालाब में
कमल
पंखों को गुदगुदाते हुए
बैठ
जाता है उड़कर
बिजूके
के माथे पर यकायक
हरी
हो जाती हैं मजे की आँखें
पकी
हुई बालियों की गंध
समा
जाती है उसकी देह में
बरसती
आग के बीच
आम
की छाया में पड़ी खटिया पर
मेरे
साथ सुनता है
बड़े
मामा से कारनामें
उड़
जाता है न जाने कहाँ
गुलाबी
अनंत में चिड़ियों के साथ
छुप
जाता है किसी बछड़े की तरह
घर
लौटते रेवड़ में
उड़ती
हुई धूल के बीच
दिखाई
देती है मजे की झलक
बहुत
इच्छा रहती है
मजे
के साथ छुट्टी बिताने की
की-बोर्ड
और कम्प्यूटर पर ताला लगाकर
बहुत
इच्छा रहती है मजा करने की।
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