Thursday, October 29, 2015

पुरानी लोहे की आलमारी

पुरानी लोहे की आलमारी


खोलकर संग्रहालय के दरवाजे
जब चाहे प्रवेश करती है उसमें वह स्त्री

कुछ सस्ती मालाएँ
पुरानी तस्वीरों का एक एलबम
कुछ चिटि्‌ठयाँ,ऊन के गोले
अधबना एक छोटा स्वेटर
पुरानें गीतों के कुछ कैसेट
जाने क्या-क्या सहेज रखा है आलमारी में

यह आलमारी के कब्जों की चरमराहट नहीं है
चला आ रहा है कोई थके हुए कदमों से
समय की धूल है यह
जो जम गई है उसकी देह और
आलमारी के अस्तर पर एक साथ

रूप का अपना नया प्रतिबिंब देखती है हर रोज
आलमारी में जड़े हुए दर्पण में
झील के पानी में नजर आती है ज्यों
पतझड़ के ठीक पहले
पेड़ की परछाई।

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