कविता
स्वागत है
स्वागत है सूर्य
तुम्हारी किरणें
बिखरती रहीं चारों तरफ
परमाणुओं तक पहुँचती रही तुम्हारी ऊष्मा
उजाला हो गया अन्धकार से घिरे हरेक घर में
होता रहा एक समान वितरण रसद का
तुम्हारी निर्बाध व्यवस्था का अभिनन्दन
स्वागत है पवन तुम्हारा
तुमने नहीं की कोई मिलावट हवा में
हम ही से होता रहा विष वमन
राशन कार्ड से नहीं बाँटते तुम प्राण वायु
तुम्हारे निशुल्क मुक्त बाजार का वंदन
हे पर्वतराज
भगिरथियों के जन्म दाता
तुम लुटाते रहे अपनी दौलत
हम ही थे जिन्होंने बंधक बना लिया तुमको
तुम्हारी संतानों के आंसुओं से
हमने ही साफ़ कीं अपनी जहर बुझी बर्छियां
क्या धरती क्या जीव
प्यासे नहीं रहे कभी
तुम्हारी कृपा का आभार
समुद्र के जल महादान पर्व के मुहूर्त तक
नदियों, कूपों में
भरा रहा जल
हे महासागर
प्रणम्य है तुम्हारी विशालता
कोई मुकाबला नहीं तुम्हारे अनंत वक्ष का
हमारी दंभ से फूगी हुई छातियों के नाप से
तुम्हारी गहराइयों तक
शायद ही पहुँच पाई होगी
किसी महान सम्राट की सोच
हे ब्रह्माण्ड की समष्टियों
तुम्हारे होने से आसान हुईं जीवन की कविताएँ
अंतरमन से आभार तुम्हारा
बहुत-बहुत धन्यवाद.
ब्रजेश कानूनगो
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