Saturday, October 31, 2015

डायरी

कविता
डायरी
ब्रजेश कानूनगो

डायरी के पन्ने से घास की खुशबू आती है
पत्तियों की सरसराहट
पेड़ की चीख के साथ
कुछ पक्षियों के उड़ जाने की आवाज को सुनता हूँ मैं

आंकड़ों की संपदा से भारी हैं कुछ पन्ने
कुछ तने हैं स्वाभिमान से
कुछ पन्ने गालियों से शर्मसार हैं
दर्शन की नई व्याख्या से 
इतिहास लिखा गया है डायरी में


किसी स्त्री के खून से रंग गया है जैसे एक पन्ना
खूंखार जबड़ों से मुक्ति के संघर्ष में छटपटा रहा है कोई बच्चा
मुस्कराहट भी बिखरी है डायरी में कुछ बच्चों की 
मुक्ति ही जैसे उनके सत्य का अर्थ

पन्ने-पन्ने पर बिखरी हैं कथाएँ
विज्ञान, राजनीति और अर्थशास्त्र का
सबक पढ़ा रहे हैं योगाचार्य
कथाओं के वृहद् कारोबार का विस्तार है इसमें
कारागार के भीतर ध्यान में लीन हैं पूजनीय बाबा
नाटक के जवाब में थियेटर को आग लगाते  
प्रहसन की स्क्रिप्ट मौजूद है बीते साल की डायरी में   

कविताएँ तो बहुत सारी हैं डायरी के पन्नों पर
एक में वसंत का सौन्दर्य बिखरा है
प्रेम में इतने लीन है कुछ पन्ने कि सुध-बुध खो बैठे है
उन्हें पता ही नहीं कि
कितने बह गए समुद्र के गुस्से के कारण
पहाड़ के प्रलय में कितने लापता हो गए
घनी-गहरी घांटियों में
दुःख की बाढ़ से भीग रहा है पन्ना

कुछ फाड़कर निकाल दिए गए हैं
खाली छोड़ दिए गए हैं कुछ पन्ने जान बूझकर

ऐसे ही भरती रहेगी स्मृति की अलमारी.


ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रीजेंसी,चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर -452018      

        

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