जिप्सी
गाँव से फोन आया है भाई का
जिप्सी नही रही आज
बीमार थी कई दिनों से
उम्र भी हो गई थी बारह साल
बच्चों के साथ खेलते-कूदते बडी हुई
नन्हे के हाथों से बिस्कुट झपटकर उसे छकाती
लौटती जब बेटी स्कूल से
साइकिल की आवाज सुनते
दौड पडती दरवाजे तक
पिता के पलंग के नीचे चौकन्नी सदैव
उस रात जब नही रहे पिता
वही थी उनके पास
कितनी पीडा हुई होगी
कैसे छूटे होंगे प्राण
वही जानती थी शायद
अचानक बूढी हुई माँ
पति की स्मृतियों को
खोजती रही अंत तक
जिप्सी की पनीली आँखों में
पिता की मौत का रहस्य अब दफन है नीम के पेड के पास
बहुत दिनों बाद घर लौटने पर
अब कौन झगडेगा हमसे
कोई नही होगा रूठकर उपवास पर बैठनेवाला
और थोडी देर बाद
किसी के गोद में आकर बैठ जाने का
हम इंतजार करते रह जाएँगे।
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