कविता
तमाशा
ब्रजेश कानूनगो
सब कुछ तो यही तय है तमाशे में
कि बायाँ हाथ
नहीं करता काम दाहिने की तरह तो
काट देता है तमाशगीर उसे अपनी तलवार से सरेआम
काट देता है तमाशगीर उसे अपनी तलवार से सरेआम
कराहने की बजाए मुस्कुराता है जमूरा
दाहिना करता है सलाम यदि बाँए की तरह
एक झटके में जमीन पर आ गिरता है जमूरे का दूसरा हाथ
एक झटके में जमीन पर आ गिरता है जमूरे का दूसरा हाथ
और जब मुड़ता है तमाशे वाला
तलवार लेकर दर्शकों की तरफ
जमूरा खिलखिलाने लगता है
मजा तो यह है कि तालियाँ बजाते हैं
लहूलुहान कटे हाथ
आघात की हर कार्यवाही पर.
आघात की हर कार्यवाही पर.
ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर-452018
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