Friday, October 30, 2015

तमाशा

कविता
तमाशा
ब्रजेश कानूनगो  

सब कुछ तो यही तय है तमाशे में
कि बायाँ हाथ
नहीं करता काम  दाहिने की तरह तो 
काट देता है तमाशगीर उसे अपनी तलवार से सरेआम
कराहने की बजाए मुस्कुराता है जमूरा

दाहिना करता है सलाम यदि बाँए की तरह  
एक झटके में जमीन पर आ गिरता है जमूरे का दूसरा हाथ   

और जब मुड़ता है तमाशे वाला
तलवार लेकर दर्शकों की तरफ
जमूरा खिलखिलाने लगता है 

मजा तो यह है कि तालियाँ बजाते हैं
लहूलुहान कटे हाथ 
आघात की हर कार्यवाही पर.

ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर-452018  


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