Saturday, October 31, 2015

आभासी दुनिया में

कविता
आभासी दुनिया में
ब्रजेश कानूनगो

छोटी और बहुत व्यस्त हो गयी है यह दुनिया
समय का अपव्यय है मिलना जुलना
केवल मित्रता के लिए मित्र नहीं बनाता कोई
दुःख और खुशी वैयक्तिक हो गए हैं आस्था की तरह
चेहरा पढ़ पाने की भाषा नदारत है संसार से 
  
कवि ही पढ़ते है कविताएँ
पुस्तकें समृद्धि हैं ग्रंथालयों की
या फिर दिखाई देती हैं
अभिजात्य के प्रमाणपत्र की तरह
टंगी होती हैं जैसे हुसैन की पेंटिंग
दुनियादार की दमकती बैठक में

मैंने चुन लिया है नया विकल्प
लोग कहते हैं कि केवल मायावी है मेरा संसार 
सच नहीं सच की छाया डोल रही है यहाँ
भ्रम और झूठ क्या कम हैं हुजूर वहाँ?
जिसे कहते हो असली दुनिया
 
हर जीत पर इस जहाँ में देता हूँ बधाई
और दुःख में होतीं हैं मेरी संवेदनाएं सबके साथ
करता हूँ तारीफ़ खुले मन से  
जब भीग जाता है मन किसी कविता को पढ़ते हुए
हर उस बात पर जारी करता हूँ सहमति का वक्तव्य
जो नदी, चौराहे और दिलों की सडांध को दूर करती हो

दीवार पर चिपकाता हूँ
अन्याय के खिलाफ अपना बयान     
रोज लिख आता हूँ कुछ शब्द
लाल स्याही से जैसे लिखता खुली इबारत कोई इंकलाबी .
 

ब्रजेश कानूनगो 503,गोयल रीजेंसी, चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर-452018    

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