कविता
आभासी दुनिया में
ब्रजेश कानूनगो
छोटी और बहुत व्यस्त
हो गयी है यह दुनिया
समय का अपव्यय है
मिलना जुलना
केवल मित्रता के लिए
मित्र नहीं बनाता कोई
दुःख और खुशी
वैयक्तिक हो गए हैं आस्था की तरह
चेहरा पढ़ पाने की
भाषा नदारत है संसार से
कवि ही पढ़ते है
कविताएँ
पुस्तकें समृद्धि हैं
ग्रंथालयों की
या फिर दिखाई देती
हैं
अभिजात्य के
प्रमाणपत्र की तरह
टंगी होती हैं जैसे हुसैन
की पेंटिंग
दुनियादार की दमकती
बैठक में
मैंने चुन लिया है
नया विकल्प
लोग कहते हैं कि
केवल मायावी है मेरा संसार
सच नहीं सच की छाया
डोल रही है यहाँ
भ्रम और झूठ क्या कम
हैं हुजूर वहाँ?
जिसे कहते हो असली
दुनिया
हर जीत पर इस जहाँ
में देता हूँ बधाई
और दुःख में होतीं
हैं मेरी संवेदनाएं सबके साथ
करता हूँ तारीफ़ खुले
मन से
जब भीग जाता है मन
किसी कविता को पढ़ते हुए
हर उस बात पर जारी
करता हूँ सहमति का वक्तव्य
जो नदी, चौराहे और
दिलों की सडांध को दूर करती हो
दीवार पर चिपकाता हूँ
अन्याय के खिलाफ
अपना बयान
रोज लिख आता हूँ कुछ
शब्द
लाल स्याही से जैसे लिखता
खुली इबारत कोई इंकलाबी .
ब्रजेश कानूनगो 503,गोयल रीजेंसी, चमेली पार्क, कनाडिया रोड,
इंदौर-452018
No comments:
Post a Comment