कविता
चूहे की तलाश में
ब्रजेश कानूनगो
तुम कहते हो
एक दोहे में निचोड़ कर रख दूँ आकाश
चार पंक्तियों के बाड़े में बिखरा दूँ सुख-दुःख
वह तुलसी का चौबारा था
जहाँ अर्थ से लदे शब्द दौड़ लगाते थे
मुझमें नहीं भक्त–सा धैर्य
न कोई राम मेरा
निर्भय नहीं मैं कबीर की तरह
खरी-खरी मेरे बस में नहीं कहना
मेरी वाणी सीप नहीं कोई
मत करो प्रवाल की उम्मीद
तुम भी कहाँ रहे अब
इशारों में समझने वाले
धार्मिक भी नहीं अब वैसे
कि बर्दाश्त कर सको दो टूक
एक चूहे की तलाश में पहाडी को खोदता रहता हूँ
मिट्टी के ढेर की तरह जमा हो जाती है कविता.
ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रीजेंसी, चमेली पार्क, कनाडिया रोड,
इंदौर 452018
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