Sunday, November 1, 2015

छौंक

कविता
छौंक
ब्रजेश कानूनगो  

तुम्हारे सितारे उसके आकाश में टीम-टिमाते हैं
उसकी छत की धूप चली आती है तुम्हारे आँगन में शाम ढले
मेरी छाया खिड़की से गुजर कर
पड़ोसी की तस्वीर से गले मिलती है
अगरबत्ती और लोबान की हर खुशबू से महकता है मुहल्ला

चिड़िया तितली कीट-पतंगे टहलते रहते हैं बे-रोक

ऐसा क्या गजब हो गया
कि रामचरण की बगीची में सलीम की बकरी के घुस आने से
सब्जियों की तरह कट गए लोग

ये कौन-सा छौंक लगाया गया है
कि धुआँ धुआँ सा हो गया है चारों तरफ.


ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रीजेंसी, चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर -452018  

 






No comments:

Post a Comment