Sunday, April 3, 2016

छुट्टी मनाते गाँव के बच्चे

कविता
छुट्टी मनाते गाँव के बच्चे
ब्रजेश कानूनगो

ताला पडा होता है जब स्कूलों में 
वे ज्यादा खुश होते हैं 

खुली छत के नीचे जीवन के गीत गाते हैं

उनकी उछल कूद
जैसे पूरी लंका में आग लगाने को बेताब
उत्साह के एवरेस्ट पर झंडा लहराते
कि बस अभी छलांग जाएंगे हिमालय.

जश्न के पहले 
पटाखों की आवाज की तरह 
फूटते हैं उनकी  प्रसन्नता के गुब्बारे
किसी ख़ास वजन की नहीं होती खिलखिलाहट उनकी 
जाना पहचाना कोलाहल  किसी बालगीत-सा     
गूंजता रहता है यहाँ-वहाँ. 
  
पानी से भरे तालाब में
सतह पर उछलती पत्थर की कत्तल
एक छोर से तेज गति से ऐसे सनसनाती है
जैसे कोई मिसाइल दागी गयी हो शत्रु पर
दुश्मन भी छुट्टी मनाने आता है दूसरे किनारे.    

सैकड़ों आम  पेड़ पर  ऐसे
जैसे  निशाने की दूकान पर
गुब्बारे सजे हों मीनाबाजार में
सही निशाना गुलेल का
मिठास घोल देता है 
एकाग्रता का सबक सीखते बच्चों में.

विज्ञापनों से रिश्ते जोड़ने की तरह ही 
कठिन होता है तय करना
कि बबलू पिता बनेगा
और पिंकी निभाहेगी घरवाली की भूमिका
जो सबसे छोटा होता है 
उसे तो बच्चा ही बनना होता है खेल में भी  
जिम्मेदारी निभाने का सबसे पुराना पाठ दुहराते हुए 
याद करते हैं 'घर' की परिभाषा.

पुस्तकें सोई रहती हैं जब गहरी नींद में
सपनों और सच को जीते हुए
जीवन की किताब पढ़ते हैं  
छुट्टियां मनाते गाँव के बच्चे. 

शहर में भी रहते हैं गाँव के कुछ बच्चे
शिविरों में जाना बस में नहीं जिनके 
चले जाते हैं
अमराइयों में छुटियाँ मनाने .  

ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रिजेंसी, चमेली पार्क, कनाडिया रोड,इंदौर -452018