कविता
देवी मंदिर में
ब्रजेश कानूनगो
श्रीमानजी !
आप बहुत भाग्यशाली हैं
जो पधारें हैं माता मंदिर
जो पधारें हैं माता मंदिर
सुबह बच्ची
दोपहर युवती
शाम को औरत का
रूप धरती है चमत्कारी प्रतिमा
धन्यवाद पंडित जी!
सच तो यह है कि
सच तो यह है कि
फूल-पत्तों, धरती-आकाश
हर जगह दिख जाता है अक्सर
देवी का यह अद्भुत रूप मुझे
एक देवी चहक उठती है सुबह-सुबह
थकान को हर लेती दूसरी
एक का नेह भरा हाथ
विश्वास से भर देता है हर शाम
क्षमा करें
भीतर नगाड़े सा कुछ बजने लगा है
मुझे घर लौटना चाहिए अब.
ब्रजेश कानूनगो
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