Sunday, October 23, 2016

मॉर्निंग वॅाक

कविता
मॉर्निंग वॅाक
ब्रजेश कानूनगो 

ये बहुत अच्छा परिवर्तन दिखाई दे रहा है आजकल
कि लोग सवेरे-सवेरे बहुतायत से
मॉर्निंग वॅाक के लिए निकल आते हैं
या निकलते रहे हों बहुत पहले से
लेकिन यह नजारा मेरे लिए अब उपलब्ध हुआ है

रिटायरमेंट के बाद अक्सर होता यही है कि
सरकारी क्वार्टर से मुक्त हो कर
हम अपने बनाए नए घोसले में चले आते हैं
जो तिनके नौकरी में जुटाए थे
उनकी छप्पर के नीचे सुस्ताने का समय
शुरू होता है अब

और वह समय भी शुरू होता है
जिसका रहस्य बिदाई समारोह में
साथियों ने यह कहकर जाहिर किया था
कि अब आप वह कर सकेंगे इत्मीनान से
जो नहीं कर सके अब तक
भले ही वे नहीं जानते होंगे कि
मैंने क्या किया था अब तक
और क्या करना चाहता हूँ आगे

इसे संयोग ही कहिए कि
मेरे इस नए घर के सामने
बचा हुआ है खुला मैदान और  
नहीं हुआ है कोई अतिक्रमण अब तक 
हालांकि विकास के दौर में
कुछ सड़कें जरूर बन गयी है यहाँ

यह तो कदापि नहीं सोचा गया होगा कि
लोगों के लिए ये मॉर्निंग वॅाक
का ट्रेक बन जाएँगी


अब मैं आराम से लोगों को
मॉर्निंग वॅाक करते हुए देख सकता हूँ
चाहूँ तो शामिल भी हो सकता हूँ
चलते दौड़ते ठहाके लगाते इस खुशमिजाज समूह में

अब कोई हड़बडी भी नहीं है कि
चौराहे से बस पकड़ने के चक्कर में
अधूरा नाश्ता छोड़ लगाना पड़े तेज दौड़
अब कायदे से दौड़ सकता हूँ
मैदान में मॉर्निंग वॅाक पर निकले
बुजुर्गों और बच्चों के साथ-साथ

मेरे लिए यह दृश्य कुतूहल से भरा है कि
सीधे-सीधे चलते हुए लोगों के बीच
एक आदमी उल्टे पैरों चल रहा है
उसकी पीठ दूसरों की आँखों के सामने है
और जब वे निकल जाते हैं आमने सामने से
उसकी नज़रों से कई पीठें दूर सरकती जाती हैं  

मॉर्निंग वॅाक करते लोगों के बीच
मुझे यह आदमी किसी विद्रोही की तरह दिखाई देता है
इसे स्वीकार नहीं एक ही तरह से वॅाक करना
यह भी हो सकता है इसकी कोई अलग समस्या हो 
और उसका निदान सीधे चलते हुए नहीं हो सकता शायद

वॅाक करने का उसका दृष्टिकोण
मेल नहीं खाता समूह की आदत से शायद
इसलिए उसने चुन ली हो अपनी शैली अलग


जैसे भिन्न विचारधारा के कारण
सामान्य से हटकर
विकल्पों का रास्ता चुना जाता है

शुरू-शुरू में वह अकेला ही
मॉर्निंग वॅाक करते लोगों की भीड़ में दिखाई देता था
फिर ऐसा कुछ हुआ
कि कांरवा बढ़ता गया
और गिनती बढ़ती गयी
उल्टे पैरों मॉर्निंग वॅाक करने वालों की

सबसे दिलचस्प तो यह रहा कि 
जब जब उल्टे पैरों मॉर्निंग वॅाक करके घर लौटता हूँ
एक कविता जरूर निकल आती है. 

ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रीजेंसी, चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर-452018

   

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