घर की छत पर बिस्तर
ब्रजेश कानूनगो
घर की छत पर फिर लगे बिस्तर
अस्सी बरस की माँ की गोद में जा लेटा
अस्सी बरस की माँ की गोद में जा लेटा
उनसाठ बरस का बच्चा
रुई से भरा आकाश
सिनेमा हाल का जैसे विशाल परदा
हवाओं के साथ बदलते कहानी के दृश्य
कभी हाथी तो कभी लाल पान का बादशाह
पल-पल में बदलती तस्वीर
पल-पल में बदलती तस्वीर
घोड़े में बदल गया बादशाह यकायक
हाथी उड़ गया कबूतर की शक्ल में
हाथी उड़ गया कबूतर की शक्ल में
न बादशाह
न हाथी
न कबूतर
कुछ भी नहीं रहा थोड़ी देर बाद
अँधेरे में विलीन हो गईं चित्रकथाएँ
घर की छत पर लेटा
थपकियों की ताल पर
एक बेटा बचपन को याद करता रहा
सुनता रहा देर तक माँ की बे-आवाज लोरी
उतारता रहा दुनिया भर की थकान.
ब्रजेश कानूनगो
No comments:
Post a Comment