Sunday, October 23, 2016

घर की छत पर बिस्तर

घर की छत पर बिस्तर
ब्रजेश कानूनगो  

घर की छत पर फिर लगे बिस्तर
अस्सी बरस की माँ की गोद में जा लेटा
उनसाठ बरस का बच्चा  

रुई से भरा  आकाश
सिनेमा हाल का जैसे विशाल परदा
हवाओं के साथ  बदलते कहानी के दृश्य

कभी हाथी तो कभी लाल पान का बादशाह 
पल-पल में बदलती तस्वीर
घोड़े में बदल गया बादशाह यकायक 
हाथी उड़ गया कबूतर की शक्ल में

न बादशाह
न हाथी
न कबूतर
कुछ भी नहीं रहा थोड़ी देर बाद
अँधेरे में विलीन हो गईं चित्रकथाएँ

घर की छत पर लेटा
थपकियों की ताल पर
एक बेटा बचपन को याद करता रहा
सुनता रहा देर तक माँ की बे-आवाज लोरी
उतारता रहा दुनिया भर की थकान.

ब्रजेश कानूनगो


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