Sunday, October 9, 2016

भरा हुआ

कविता
भरा हुआ
ब्रजेश कानूनगो 

जो खाली है प्रतीक्षा से भरा है
जो था वह मिठास में बदल गया खाली होकर

पत्थरों से भरे को नमी का इंतज़ार था 
मुलायम हुआ तो गीलेपन से भर गया

हरे होने के इंतज़ार में
बीजों की प्रतीक्षा करता रहा
दानों से भरीं बालियाँ तो खुशियों से भर गया जीवन

कोंपलों की प्रतीक्षा में खड़ा पेड़ उदासी से भरा है
पत्तियों से भरेगा तो कलरव से भर जाएगी हवा

कामना से भरे थे ह्रदय ऊष्म आलिंगन की प्रतीक्षा में
प्रेम से भरे तो पिघलने लगा बर्फ
बहने लगीं प्रतीक्षा करतीं नदियाँ लबालब

खनक से खाली हुआ तो चहक से भरा   
जो चहक से भरा था लोरियों से भरने लगा
धीरे-धीरे सपनों से भर गई नींद

सपनों से भरा है समुद्र
खाली होने की प्रतीक्षा में.  

ब्रजेश कानूनगो



     


    

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