कविता
रंगों में रंग
ब्रजेश कानूनगो
रंगों में रंग
ब्रजेश कानूनगो
माँ के
मांडने में
भूरे रंग के कैनवास पर
जो सफ़ेद लकीरें नाचती हैं आदिवासियों की तरह
उत्सव का रंग समाया होता है उनमें
भूरे रंग के कैनवास पर
जो सफ़ेद लकीरें नाचती हैं आदिवासियों की तरह
उत्सव का रंग समाया होता है उनमें
खुशी में
डूबें हों
तो स्याह भी दिखाई देने लगता है जैसे हल्दी का रंग
पीला पत्ता झरता है सूखे पेड़ से प्रेम में डूबा
तो स्याह भी दिखाई देने लगता है जैसे हल्दी का रंग
पीला पत्ता झरता है सूखे पेड़ से प्रेम में डूबा
गुलाब की
पंखुरी की तरह बिखर जाता है धरती पर
हरे में
कुछ भी हरा नहीं होता उदास मौसम में
जैसे फसल का रंग किसान की आँखों में
जैसे फसल का रंग किसान की आँखों में
पाला पड़ने के बाद
नीला हुआ
समुद्र
सदियों से धैर्य के गहरे रंग से भरा है शायद
सदियों से धैर्य के गहरे रंग से भरा है शायद
और जो
सुर्ख बिखरा है यहाँ वहाँ
उपद्रवियों के जश्न के बाद
आंसूओं के रंग से कितना मिलता है उसका रंग
उपद्रवियों के जश्न के बाद
आंसूओं के रंग से कितना मिलता है उसका रंग
केशरिया
में केसर नहीं
हरियाली दिखती नहीं हरे में
सात रंगों का समुच्चय नहीं रहा सफ़ेद
हरियाली दिखती नहीं हरे में
सात रंगों का समुच्चय नहीं रहा सफ़ेद
न जाने
किस रंग में डूबे हुए है सारे रंग
कि छोड़ते जाते हैं अपना रंग.
कि छोड़ते जाते हैं अपना रंग.
ब्रजेश कानूनगो
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