कविता
दूरियाँ
ब्रजेश
कानूनगो
1
बहुत
दूर थे..
इतने दूर कि
इतने दूर कि
मोबाइल
से बात कर रहे थे
एक पलंग के दो छोर पर थे दोनों !
एक पलंग के दो छोर पर थे दोनों !
2
एक छींक आती है उनको स्क्रीन
पर
तो हम बीमार हो जाते हैं
इतने करीब हैं वे
जैसे लेपटॉप पर कैमरे की आँख.
3
शाम की सैर के बाद
आरामकुर्सी पर सुस्ताएंगे अभी
आकर
दाल बघारने की वही अद्भुत खुशबू
फिर बिखर जाएगी थोड़ी देर में
चौथाई सदी की दूरी के बावजूद
साथ-साथ हैं वे अभी-तक.
ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रीजेंसी, चमेली पार्क,
कनाडिया रोड, इंदौर-452018