Thursday, December 1, 2016

दूरियाँ


कविता
दूरियाँ
ब्रजेश कानूनगो

1
बहुत दूर थे..
इतने दूर कि
मोबाइल से बात कर रहे थे
एक पलंग के दो छोर पर थे दोनों !

2
एक छींक आती है उनको स्क्रीन पर 
तो हम बीमार हो जाते हैं 
इतने करीब हैं वे
जैसे लेपटॉप पर कैमरे की आँख.

3
शाम की सैर के बाद
आरामकुर्सी पर सुस्ताएंगे अभी आकर  
दाल बघारने की वही अद्भुत खुशबू
फिर बिखर जाएगी थोड़ी देर में
चौथाई सदी की दूरी के बावजूद
साथ-साथ हैं वे अभी-तक. 


ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रीजेंसी, चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर-452018