Tuesday, January 10, 2017

गड़बड़ सपना

कविता
गड़बड़ सपना
ब्रजेश कानूनगो

1

सपने में सुबह-सुबह ही हुई गड़बड़  
देखा जब मैंने अपना हिन्दी अखबार 
मुखपृष्ठ पर रोमन में छपा था उसका नया नाम

इस ‘न्यूयार्क टाइम्स’ के भीतर तो बहुत ही गड़बड़ दिखाई दिया
सम्पादकीय की जगह फ्रेंच में छपी थी ‘मन की बात’
किन्ही रामचंद्र शुक्ल और हजारी प्रसाद के ट्वीटर के ठीक नीचे
चर्चित युवा विचारक नें हिन्दी की चिंता में
देवनागरी लिपि में कुछ विलायती सुझाव अंगरेजी में व्यक्त किए थे.

2

सफ़ेद इमारत की पृष्ठभूमि में एक परेड होती दिखाई दी सपने में  
कंधे पर लेपटॉप लटकाए सैनिक बहुत कुशलता से कदम आगे बढ़ाते रहे
तिरंगी टोपियों में शिक्षकों का बहुत बड़ा जत्था
अपने कौशल का प्रदर्शन करता गुजर गया सामने से
अतिथि और मेजबान ने बदल लीं आपस में
अपनी कुर्सियाँ.

3

यह बहुत अजीब था
कि टीवी धारावाहिक की तरह
कई एपिसोडों में बटा हुआ था सपना

कई बन्दूकधारी स्कूलों को घेरे खड़े थे
और अन्दर से बच्चों के रोने की लयबद्ध आवाज आ रही थी
कहा नहीं जा सकता वे कोई पहाड़ा याद कर रहे थे
या किसी मन्त्र का पारायण

पैंसिलों की नोकों पर भीष्म की तरह लेटा रक्त रंजित चित्रकार
बिखेर रहा था रहस्यमयी मुस्कान
दुनिया भर की कूंचियाँ जमा थीं
स्याही और रंगों की जैसे बाढ़ उमड़ी थी वहाँ

मुम्बई के किसी फ्रेंच रेस्टोरेंट में घुसे आतंकवादियों ने 
ब्रिटेन के नागरिकों को बंदी बना लिया था
पाकिस्तान की जेल में बंद किसी साथी को मुक्त करवाना चाहते थे वे
ट्विन टावर को ध्वस्त करने के बाद नाव में बदल गया विमान

गालियों की तरह नारे बोलते हुए कुछ युवक प्रबुद्ध बुजुर्गों की सभा में चले आए सपने में  
पेरिस में मोमबत्तियाँ जलाए मूर्ती की पास जमा हुए क्षोभ में डूबे नागरिक

और सबसे बड़ी गड़बडी तो यह हुई
कि रात तीन बजकर पैंतालीस मिनट पर
मोबाइल की चिड़िया बोल उठी

शान्ति समिति का एसएमएस था-
विश्व शान्ति और भाई-चारे पर विमर्श के लिए बैठक रखी गयी है
दोपहर एक बजे गांधी हाल में.


ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रीजेंसी,चमेली पार्क,कनाडिया रोड, इंदौर – 452018

          
   



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