कविता
कोहरे में सुबह
ब्रजेश कानूनगो
रैपर में लिपटी सुबह के भीतर
किलकारियाँ कैद हैं
किसी बच्चे का दूध छलक गया है तश्तरी में
दृश्य अब शुरू होने को है
लहराने लगा है संवेदनाओं का पर्दा
चूड़ियों की खनक और
गजरों की महक से भरने लगी है हवा
सुबह का रैपर हटेगा
तो दिखाई देगी तश्तरी में छपी तस्वीर
पहाड़ियों के बीच से मुस्कुराने लगेगा सूरज
और तश्तरी के दूध को गटक जाएगा बच्चे की तरह
बबूल में उलझ जाएगा झोपडी से निकला धुआँ
गर्म रोटियों की खुशबू से लद जाएँगी डालियाँ
ठीक इसी वक्त
पक्षियों का एक समूह निकल जाएगा रोज की यात्रा
पर.
ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रीजेंसी, चमेली पार्क, कनाडिया रोड,
इंदौर - 452018
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