Tuesday, January 10, 2017

कोहरे में सुबह

कविता
कोहरे में सुबह
ब्रजेश कानूनगो

रैपर में लिपटी सुबह के भीतर
किलकारियाँ कैद हैं
किसी बच्चे का दूध छलक गया है तश्तरी में

दृश्य अब शुरू होने को है
लहराने लगा है संवेदनाओं का पर्दा  
चूड़ियों की खनक और   
गजरों की महक से भरने लगी है हवा    

सुबह का रैपर हटेगा
तो दिखाई देगी तश्तरी में छपी तस्वीर

पहाड़ियों के बीच से मुस्कुराने लगेगा सूरज
और तश्तरी के दूध को गटक जाएगा बच्चे की तरह

बबूल में उलझ जाएगा झोपडी से निकला धुआँ
गर्म रोटियों की खुशबू से लद जाएँगी डालियाँ
  
ठीक इसी वक्त
पक्षियों का एक समूह निकल जाएगा रोज की यात्रा पर.


ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रीजेंसी, चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर - 452018 
      


  




  

  

  

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