आत्मग्लानि
अचानक चला गया
भुला दिया गया बूढ़ा योद्धा
अंधेरों के बीच प्रस्फुटित हैं स्मृति किरणें
भ्रम और आत्मगौरव की चकाचौंध से
अंधी हुई आँखें देख रही हैं अल्पपका अतीत
फ्लैशबैक की तरह
समझ, शिक्षा और जीवन मूल्यों का एक निर्झर झरना प्रवाहित है सामने
विनम्रता, ईमानदारी, कर्मठता के फूल खिले हैं चारो तरफ
कोई अट्टहास नहीं कर रहा अहंकार से भरा
गंभीर प्रश्नों को मसखरी में उड़ा देने की अश्लीलता दिखाई नहीं देती बहसों में
जब जीवित था किसी ने हंसाया कि
वह स्नानघर में बरसाती पहन कर नहाता था
हर आंदोलन का मैने समर्थन किया जिसमे उसे सबसे बड़ा भ्रष्टाचारी बताया गया
मुझे मजा आया जब प्रबुद्ध पत्रकार उसे कठपुतली की उपमा दे कर खिलखिलाने लगते थे
मुझे याद ही नहीं रहा उसका जतन
मंदी के महासागर से अपनी नौका को किनारे लाने में कितना कुशल था वह
मैं कैसे भूल बैठा कि वह पारदर्शिता का मसीहा था
तंत्र के घर्षण विकर्षण और उसके राज जानने का अधिकार उसी की सूझबूझ थी
गरीब लोगों की रोटी का इंतजाम
और काम मिलने का भरोसा
उसी की चाहत का नतीजा था
यह आश्चर्य ही है कि
जितना याद करता हूं अतीत को
वर्तमान शर्मसार होने लगता है
कल की मौत
घुलती जा रही आज के जीवन में
योद्धा को दी जाने वाली हर श्रद्धांजलि
लगता है जैसे मुझे दी गई है।
ब्रजेश कानूनगो
भुला दिया गया बूढ़ा योद्धा
अंधेरों के बीच प्रस्फुटित हैं स्मृति किरणें
भ्रम और आत्मगौरव की चकाचौंध से
अंधी हुई आँखें देख रही हैं अल्पपका अतीत
फ्लैशबैक की तरह
समझ, शिक्षा और जीवन मूल्यों का एक निर्झर झरना प्रवाहित है सामने
विनम्रता, ईमानदारी, कर्मठता के फूल खिले हैं चारो तरफ
कोई अट्टहास नहीं कर रहा अहंकार से भरा
गंभीर प्रश्नों को मसखरी में उड़ा देने की अश्लीलता दिखाई नहीं देती बहसों में
जब जीवित था किसी ने हंसाया कि
वह स्नानघर में बरसाती पहन कर नहाता था
हर आंदोलन का मैने समर्थन किया जिसमे उसे सबसे बड़ा भ्रष्टाचारी बताया गया
मुझे मजा आया जब प्रबुद्ध पत्रकार उसे कठपुतली की उपमा दे कर खिलखिलाने लगते थे
मुझे याद ही नहीं रहा उसका जतन
मंदी के महासागर से अपनी नौका को किनारे लाने में कितना कुशल था वह
मैं कैसे भूल बैठा कि वह पारदर्शिता का मसीहा था
तंत्र के घर्षण विकर्षण और उसके राज जानने का अधिकार उसी की सूझबूझ थी
गरीब लोगों की रोटी का इंतजाम
और काम मिलने का भरोसा
उसी की चाहत का नतीजा था
यह आश्चर्य ही है कि
जितना याद करता हूं अतीत को
वर्तमान शर्मसार होने लगता है
कल की मौत
घुलती जा रही आज के जीवन में
योद्धा को दी जाने वाली हर श्रद्धांजलि
लगता है जैसे मुझे दी गई है।
ब्रजेश कानूनगो