कविता
छुट्टी मनाते गाँव के बच्चे
ब्रजेश कानूनगो
ताला पडा होता है जब स्कूलों में
वे ज्यादा खुश होते हैं
खुली छत के नीचे जीवन के गीत गाते हैं
उनकी उछल कूद
जैसे पूरी लंका में आग लगाने को बेताब
उत्साह के एवरेस्ट पर झंडा लहराते
कि बस अभी छलांग जाएंगे हिमालय.
जश्न के पहले
पटाखों की आवाज की तरह
फूटते हैं उनकी प्रसन्नता के गुब्बारे
किसी ख़ास वजन की नहीं होती खिलखिलाहट उनकी
जाना पहचाना कोलाहल किसी बालगीत-सा
गूंजता रहता है यहाँ-वहाँ.
पानी से भरे तालाब में
सतह पर उछलती पत्थर की कत्तल
एक छोर से तेज गति से ऐसे सनसनाती है
जैसे कोई मिसाइल दागी गयी हो शत्रु पर
दुश्मन भी छुट्टी मनाने आता है दूसरे किनारे.
सैकड़ों आम पेड़ पर ऐसे
जैसे निशाने की दूकान पर
गुब्बारे सजे हों मीनाबाजार में
सही निशाना गुलेल का
मिठास घोल देता है
एकाग्रता का सबक सीखते बच्चों में.
विज्ञापनों से रिश्ते जोड़ने की तरह ही
कठिन होता है तय करना
कि बबलू पिता बनेगा
और पिंकी निभाहेगी घरवाली की भूमिका
जो सबसे छोटा होता है
उसे तो बच्चा ही बनना होता है खेल में भी
जिम्मेदारी निभाने का सबसे पुराना पाठ दुहराते
हुए
याद करते हैं 'घर' की परिभाषा.
पुस्तकें सोई रहती हैं जब गहरी नींद में
सपनों और सच को जीते हुए
जीवन की किताब पढ़ते हैं
छुट्टियां मनाते गाँव के बच्चे.
छुट्टियां मनाते गाँव के बच्चे.
शहर में भी रहते हैं गाँव के कुछ बच्चे
शिविरों में जाना बस में नहीं जिनके
चले जाते हैं
अमराइयों में छुटियाँ मनाने .
ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रिजेंसी, चमेली पार्क, कनाडिया रोड,इंदौर -452018