कठिन सवाल
दीपक की लौ से प्रकाश का घेरा बना है
उजाले में आठवीं कक्षा के गणित की किताब खोले
हल कर रहा है प्रश्न चुटकियों में वह
झोपड़ी के बाहर पहाड़ियों के ऊपर अपने पंखों को लहराती
हवाओं से संघर्ष करती दैत्याकार पवन चक्कियाँ
जुटी हुई हैं रोशनी के इंतजाम में
तलहटी में बसा है उसका गांव
गांव में धड़कता है जीवन
जीवन में उम्मीद का चिराग जलाए
वह सपनों को बुन रहा अंधेरों में
तेज हवा का झोंका दीपक की लौ को विचलित करने को लगातार आतुर
और वह है कि अपनी हथेलियों की ओट कर
अपने हिस्से की रोशनी को बचाते हुए संघर्षरत
परीक्षा की तैयारी में जुटा है
गणित में निपुण बालक को एक कठिन सवाल का जवाब मिल नहीं पा रहा
उसकी पहाड़ी,उसके गांव की हवा से बनती बिजली से
रोशन क्यों नहीं उसकी झोपड़ी
उसका जीवन।
ब्रजेश कानूनगो