Saturday, September 27, 2025

कठिन सवाल

कठिन सवाल


दीपक की लौ से प्रकाश का घेरा बना है

उजाले में आठवीं कक्षा के गणित की किताब खोले

हल कर रहा है प्रश्न चुटकियों में वह

 

झोपड़ी के बाहर पहाड़ियों के ऊपर अपने पंखों को लहराती 

हवाओं से संघर्ष करती दैत्याकार पवन चक्कियाँ 

जुटी हुई हैं रोशनी के इंतजाम में


तलहटी में बसा है उसका गांव 

गांव में धड़कता है जीवन 

जीवन में उम्मीद का चिराग जलाए

वह सपनों को बुन रहा अंधेरों में


तेज हवा का झोंका दीपक की लौ को विचलित करने को लगातार आतुर 

और वह है कि अपनी हथेलियों की ओट कर 

अपने हिस्से की रोशनी को बचाते हुए संघर्षरत 

परीक्षा की तैयारी में जुटा है


गणित में निपुण बालक को एक कठिन सवाल का जवाब मिल नहीं पा रहा

उसकी पहाड़ी,उसके गांव की हवा से बनती बिजली से

रोशन क्यों नहीं उसकी झोपड़ी

उसका जीवन।


ब्रजेश कानूनगो

Wednesday, August 6, 2025

दुख फटता है पगलाए बादल की तरह

दुख फटता है पगलाए बादल की तरह

 

सुख हमारे भीतर रिसता है तो महकने लगती है जीवन की बगिया

लोक में अलौकिक चमक पैदा होती है आनंद के उत्सव से


जब बूंदों का संगीत गूंजने लगता है हमारे भीतर

खुशियों की नदियां बहने लगती है कल कल 

और जब वाष्प उठती है तपते दुखों की महासागर की छाती से

इकट्ठा हो जाते हैं घनेरे बादल मन के आकाश में 


सच तो यह है कि 

सुख बारिश सा लय में बरसता है

दुख फटता है पगलाए बादल की तरह 


सुख की बारिश से मुग्ध मनुष्य पर

बिजली गिरने से भी अधिक भयानक होता है 

बादल फटने का खतरा


बादल सिखा जाता है हमें

अपनी हद में रहने का सबक।


ब्रजेश कानूनगो