Wednesday, August 6, 2025

दुख फटता है पगलाए बादल की तरह

दुख फटता है पगलाए बादल की तरह

 

सुख हमारे भीतर रिसता है तो महकने लगती है जीवन की बगिया

लोक में अलौकिक चमक पैदा होती है आनंद के उत्सव से


जब बूंदों का संगीत गूंजने लगता है हमारे भीतर

खुशियों की नदियां बहने लगती है कल कल 

और जब वाष्प उठती है तपते दुखों की महासागर की छाती से

इकट्ठा हो जाते हैं घनेरे बादल मन के आकाश में 


सच तो यह है कि 

सुख बारिश सा लय में बरसता है

दुख फटता है पगलाए बादल की तरह 


सुख की बारिश से मुग्ध मनुष्य पर

बिजली गिरने से भी अधिक भयानक होता है 

बादल फटने का खतरा


बादल सिखा जाता है हमें

अपनी हद में रहने का सबक।


ब्रजेश कानूनगो