कविता
अमर घर चल
ब्रजेश कानूनगो
अमर ! तुम घर क्यों नहीं आते
पहली कक्षा की पाठ्य पुस्तक में
पहली कक्षा की पाठ्य पुस्तक में
कितनी बार कहा गया था तुमसे
कि चल अमर घर चल
कि चल अमर घर चल
तुम चाहो तो अकबर को भी साथ लेते आओ
मगर घर चले आओ अब
प्रताप कब से इन्तजार कर रहा है
कि तुम आओ तो कुछ काम शुरू करें
मगर घर चले आओ अब
प्रताप कब से इन्तजार कर रहा है
कि तुम आओ तो कुछ काम शुरू करें
कोई तुमसे कुछ नहीं कहेगा
बाबूजी पिछले साल दमें में दम तोड़ चुके हैं
माँ की आँखों में अन्धेरा उतर आया है
बाबूजी पिछले साल दमें में दम तोड़ चुके हैं
माँ की आँखों में अन्धेरा उतर आया है
जिसे तुमने कभी घर नहीं माना
वह अब भी तुम्हारे इन्तजार में आँसू बहाता रहता है
वह अब भी तुम्हारे इन्तजार में आँसू बहाता रहता है
डॉ अमरेंद्र कुमार
तुम्हारे लौटने के पहले ही
तुम्हारे लौटने के पहले ही
स्टेट्स का क्लोन यहाँ तैयार कर लिया गया है
तुम खुश होंगे जानकर कि
दुनियाभर का विश्वास अर्जित किया है हमने
तुम भी करो भरोसा अमर
कोई परेशानी नहीं होगी तुम्हे
यहीं आकर बनाओ अपनी दवाइयाँ
कोइ शक नहीं इसमें कि
सच्चे सपूत हो तुम इस देश के
हमने अपनी आँखों से देखा है
परदेस आकर पिछले दिनों
बेझिझक चले आओ
घर में सब कुशल मंगल है.
ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क, कनाडिया रोड,
इंदौर - 452018
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