Monday, December 21, 2020

व्यंग्य बाण (दोहे)

व्यंग्य बाण 


1

कल है उनका जन्मदिन, 

वे अवतार दबंग। 

मनुज हैं पर मना रहे,

प्रकट उत्सव प्रसंग।


2

यों आई समता यहां,

कारज बिना उपाय।

गंगू जी टोपी पहन, 

राजा भोज कहाय। 


3

लहरा ध्वजा के डंड, 

ऊंचे सुर गरियाय।  

देख विरोधी सामने, 

फटके खूब लगाय। 


4

बोतल में है सोम रस,

यौवन का है संग।

अपना हक जो मांगता, 

रंजन करता भंग। 


5

लाते हैं जन योजना,

लोकतंत्र सिरमौर। 

प्रशस्ति बांचे मंडली,

ऐसा आया दौर।


6

सत्य रहा संदिग्ध ही,

मत समझो परिहास।

आज वही मैं लिख रहा,

झूठों का इतिहास।


7

दोहे हम हैं लिख रहे,

खबरों पर जा बैठ।

सत्य नहीं दिखता कभी,

गहरे पानी पैठ।


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व्यंग्य बाण 


1

गगरी अधजल झर गई,

मद में उसकी चाल।

मिला नहीं जल कंठ को,   

बुझा न पाई आग।


2

विक्रेता वह बड़ा चतुर,

बोली यों लगाए।

जुमलों के सच झूठ से, 

कंकड़ भी बिक जाए।


3

अपने शाही देव को, 

छप्पन भोग चढ़ाय।

हरि किशन की पत्तल में,

काजू नहीं सुहाय। 


4

चीजें कुछ मिटती नहीं,

जैसे भ्रष्टाचार। 

दे दें उसको वैधता,

बुरा नहीं सुविचार।

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ब्रजेश कानूनगो