व्यंग्य बाण
गणतंत्र में1
चीजें कुछ मिटती नहीं,
जैसे भ्रष्टाचार।
दे दें उसको वैधता,
बुरा नहीं विचार।
2
ध्वनि मत से पारित हो,
कानून वही सही।
कोई करे विरोध भी,
हम तक पहुंच नही।
3
चले मिटाने गरीबी,
बढ़ गए नव अमीर।
हुआ नहीं लेवल ऊँचा,
बदली गई लकीर।
4
सत्ता भोगिए इस तरह
कूटनीति से आज,
दोष विरोधी पर मढ़ो,
हो न सके जब काज।
5
अपना मत जब कम पड़े ,
अक्ल लगाएं खूब।
दुर्बल विपक्षी अश्व को,
जरा खिलाएं दूब।
6
ना काहू से दोस्ती,
ना काहू से बैर।
जनता हो नाराज यदि,
नहीं किसी की खैर।
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ब्रजेश कानूनगो