व्यंग्य बाण
1
कल है उनका जन्मदिन,
वे अवतार दबंग।
मनुज हैं पर मना रहे,
प्रकट उत्सव प्रसंग।
2
यों आई समता यहां,
कारज बिना उपाय।
गंगू जी टोपी पहन,
राजा भोज कहाय।
3
लहरा ध्वजा के डंड,
ऊंचे सुर गरियाय।
देख विरोधी सामने,
फटके खूब लगाय।
4
बोतल में है सोम रस,
यौवन का है संग।
अपना हक जो मांगता,
रंजन करता भंग।
5
लाते हैं जन योजना,
लोकतंत्र सिरमौर।
प्रशस्ति बांचे मंडली,
ऐसा आया दौर।
6
सत्य रहा संदिग्ध ही,
मत समझो परिहास।
आज वही मैं लिख रहा,
झूठों का इतिहास।
7
दोहे हम हैं लिख रहे,
खबरों पर जा बैठ।
सत्य नहीं दिखता कभी,
गहरे पानी पैठ।
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व्यंग्य बाण
1
गगरी अधजल झर गई,
मद में उसकी चाल।
मिला नहीं जल कंठ को,
बुझा न पाई आग।
2
विक्रेता वह बड़ा चतुर,
बोली यों लगाए।
जुमलों के सच झूठ से,
कंकड़ भी बिक जाए।
3
अपने शाही देव को,
छप्पन भोग चढ़ाय।
हरि किशन की पत्तल में,
काजू नहीं सुहाय।
4
चीजें कुछ मिटती नहीं,
जैसे भ्रष्टाचार।
दे दें उसको वैधता,
बुरा नहीं सुविचार।
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ब्रजेश कानूनगो
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