प्रेम गंध उपहार
टेसू प्रांतर में खिले,बहने लगी बयार।
गुझिया घर में बन चुकी, सजने लगा बजार।
फागुन यों लेकर आए ,खुशियों का त्योहार।
गांव बस्ती भगोरिया, प्रेम गंध उपहार।
ढोल मंजीरे ज्यों बजे, त्यों नाचे मन मोर।
इक दूजे रंग फैंकते बच्चे करते शोर
धनराज के माथे पर, भीखू मले गुलाल।
रामाजी की ढोलक पर, थिरके खान कमाल।
पिछले बरस अम्मा गई, बाबा भए उदास।
रंग लिए छोटी पोती, पुनः जगाए आस।
गिरे न स्याही पर्व पर, विस्मृत इसकी रीत।
इंद्रधनुष से रंग खिलें, रहे हमेशा प्रीत।
लोकतंत्र में होली पर, घुटे नेह की भांग।
कुर्सी का मद ना चढ़े बस इतनी सी मांग।
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ब्रजेश कानूनगो
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