Saturday, January 2, 2021

गीतिका : क्यों सोए जाते हो

गीतिका

क्यों सोए जाते हो 


उठो! क्यों इस तरह, सोते जाते हो।

है जीवन बहुत कठिन, रोते जाते हो। 


किस तरह वो देखो, काम पर लगा रहता। 

वक्त कम तुम्हारे पास, खोते जाते हो।


वह चढ़ गया पहाड़, दुख का, हंसते हंसते।

कांटा क्या चुभा एक, सिसकते जाते हो।


लड़ कर आया है वह,जंगली दरिंदों से देखो।

अपनी ही बस्ती में सिर पटकते जाते हो।


चीर कर बंजर का सीना,खुशियाँ उगा रहा कोई।

महकते फूल पत्तों को मसलते जाते हो।


बहुत से पेट भर जाते,पसीना उसका बहता है।

तुम्हारा खून ही ठंडा,बहकते जाते हो। 


वे सारे, बहुत सारे, सुंदर बना रहे दुनिया।

नाकारा तुम, मेरे भीतर उतरते जाते हो।


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ब्रजेश कानूनगो


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