पोएटिक फन
सुनो ससुर जी
रुके नहीं इच्छा प्रबल,
पाने को सम्मान।
डाले घास न कोई,
कैसे बनें महान।
नाच रहे बाजार में
ऐसे हैं हम मोर।
लिखें खूब कागज रंगें,
छपते भी घनघोर।
दाल बराबर ये मुर्गी,
बुने महल का ख्वाब।
कितनी कटी निर्णय में,
इसका नहीं जवाब।
जामाता के दरद का,
ससुर यही उपचार।
सम्मानित करें तुरन्त,
आप रहे सरकार।
यही हो रहा हर जगह,
कब कहाँ एतराज।
बटती खीर अपनों में,
समझो इसे रिवाज।
मिले हमे सम्मान यदि,
गौरव की ये बात।
पुत्री का भी मान बढ़े,
समझो इसको तात।
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ब्रजेश कानूनगो
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