Thursday, October 29, 2015

बेटी का आना

बेटी का आना
(एकता के लिए)

सुबह आज थोड़ी देर से निकला सूरज
रात भी कुछ देर से हुई कल
सितारे कुछ अधिक ही मुस्कुराते रहे
सुबह होने तक

कुछ और हरा हो गया
पत्तियों का हरापन ओस में भीग कर
चांदनी पर खिले फूलों का उजास
घर के भीतर कहकहे लगाने लगा

हरे चने के पुलाव और मैथी की महक से
दब गई सूनेपन की उदास गंध

रात को आई है सुबह की तरह
लगता है गई ही नहीं थी कभी यहाँ से.


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