Thursday, October 29, 2015

खुशियों का इंद्रधनुष

खुशियों का इंद्रधनुष

उल्का पिंड सा न जाने क्या 
टकरा गया था अचानक मुझसे
और स्मृति उतर गई किसी गहरे कुएँ में

जाने किस की कृपा से
पहुँचा दिया गया अस्पताल
छिटक गई कलाई घड़ी
लौटा गया कोई रिक्शावाला
पत्थर की बैंच पर बैठा अपरिचित
निभाता रहा पड़ोसी धर्म
कड़वी जुबान वाली बूढ़ी औरत
अंगूर और संतरों के मीठे रस से
मेरी जीभ को
बचाती रही सूखने से लगातार

अस्थियों के अलावा
दुर्घटना में टूटकर
बिखर गया था कुछ और ही
जो आ रहा था बाहर
स्मृति के साथ धीरे-धीरे

हृदय की बर्फ पिघल रही थी अंदर
मुस्कुरा रहा था खुशियों का इंद्रधनुष
मेरे आसपास।

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