Thursday, October 29, 2015

भरी बरसात में बेवजह मुस्कुराती लडकी

भरी बरसात में बेवजह मुस्कुराती लडकी

इतनी थी बारिश कि घर लौटते हुए
मुश्किल हो रहा था इधर-उधर देखना

तभी अगली गली से निकल कर
एक स्कूटर अचानक
दौडने लगा मेरे स्कूटर के साथ-साथ
जिसकी पिछली सीट पर बैठी थी वह लडकी
मूर्ति की तरह भीग रहा था जिसका शरीर

अचानक मुस्कुराने लगी लडकी मुझे देखकर
बारिश की तरह रुकता ही नही था उसका मुस्कुराना

अचरज की बात यह कि
बरसाती टोपी और लम्बे कोट में छुपे मुझको
पहचान लिया उसने भरी बरसात में
शायद रहती हो मेरे घर के आस-पास
कॉलेज की पुरानी कोई सहपाठी
पत्नी की सहेली
या टीचर रही हो बेटी की

बौछरों को भेदते हुए
पहुँच रही थी मुझ तक उसकी मुस्कुराहट

घूम गया हो उसका सिर किसी सदमें से
और निकल रहा हो दु:ख मुस्कुराहट बनकर
जब गूँजता है कोई शोक गीत अन्दर
होठों पर यूँ ही आ जाती है हँसी यकायक
कहीं जा तो नही रही किसी रिश्तेदार के साथ
इसी हँसी का इलाज करवाने

सोचता हूँ वह बीमार ही रही होगी
जो मुस्कुराती रही लगातार अपने दु:ख में
सुखी आदमी कहाँ मुस्कुराते हैं राह चलते।




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