Thursday, October 29, 2015

सालगिरह

कविता
सालगिरह
  

अजीब लग सकता है मेरा विचार
सुनकर कहें कि घूम गया है मेरा मगज बुख़ार में 
लगे यह भी कि इस आदमी को उपचार की जरूरत है तुरंत
बावला करार दिया जाऊँ चाहे  
किन्तु मनाना चाहता हूँ अपनी पुरानी कार की सालगिरह

आमतौर पर मनाई नहीं जाती बेजान चीजों की वर्षगाँठ
जीवित लोगों तक की भुला दी जाती हैं ख़ास तिथियाँ
गुदगुदाने के लिए
कभी कभार ही मनाया गया होगा
किसी विदूषक के छाते का जन्मदिन

फ्रिज या छत के पंखे की मृत्यु पर कोई करे श्राद्ध
तो अलौकिक ही कहेंगे इसे  
मेरी यह हिमाक़त भी बड़ी अटपटी है 
कि कार की सालगिरह मनेगी
मेरे यहाँ अगले माह की दस तारीख को

बहुत कठिन समय था वह
इतना कठिन कि 
दिन भी रात की तरह लगने लगे थे 
रात तो फिर रात ही थी
जो और घटाटोप से घिर गयी थी उन दिनों
डरी डरी दो जोड़ी आँखें
ताकती रहती थीं एक दूसरे का सूनापन
यह कार ही थी हमारे साथ
हमारे अपने अंश की तरह
हमारे दुःख की भागीदार


चुभने लगती थीं सुइयाँ जिन दिनों
बैचेन हो उठता था अंग-अंग  
मन का अन्धेरा गहराने लगता था कुछ और ज्यादा
तो यही लिए जाती थी वहाँ 
जहाँ उम्मीद की रोशनी से
थोड़ा सा खिल उठते थे हमारे चेहरे
जैसे खिलती है कुमुदिनी  
जैसे मुस्कुराता है सूरजमुखी का फूल    

कुछ बीज डाले गए थे मेरे भीतर
उन्ही में से एक अंकुरित होने को बैचेन है बहुत   

मुश्किल से सीखा था सबक कि
बुरे दिनों में मदद करने वालों के प्रति
कृतज्ञता व्यक्त करके ही
निभाया जाता है मनुष्य होने का धर्म

भूल नहीं सकता जीवन की अर्धायु में
उम्ररसीदा कार के उपकार को 

मनाना चाहता हूँ अपनी पुरानी कार की वर्षगाँठ का उत्सव
कहना चाहता हूँ उसे शुक्रिया, बहुत बहुत धन्यवाद. 


ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रीजेंसी,चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर-452018    



 


No comments:

Post a Comment